Friday, February 27, 2009

शायराना अंदाज़


आज कल सूनापन इस कदर सताता है
की मन पीछे की और भागता है
पर कम्बखत समय ऐसी चीज़ है
की इस दर्द को नहीं समझ पा ता है ।

असमंजस

रुक रुक के यह सोचता हूँ
क्या ग़लत हो रहा है कुछ
क्यूँ मन में विश्वास नहीं जगता
क्यूँ इतनी चिंता सताती है

यह पहले तो ना होता था
क्या येही ज़िन्दगी का दस्तूर है

कहाँ गई वोह खुशियाँ
या वोह कभी थी ही नहीं
धुंध सी थी जो मन को भाति थी
साया हट गया और अब असलियत डरावनी लगती है

इस चक्रह्व्यु की रचना इतनी कारगर है
इसका तोड़ पता होते हुए भी में बेबस हूँ
में मानता नहीं था की समय बलवान है
हम ढाल सकते हैं इसे

पर अब लगता हैं में ग़लत था
या शायद मैंने पूरी कोशिश नहीं की

चाह और आशा

चाह और आशा में क्या अन्तर है
कहते हैं किसी चीज़ को दिल से मांगो
तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है
पर किसी चीज़ की दिल से आशा करो तो वोह क्यूँ नही मिलती
क्यूँ आशा भरे सपनो का गुबारा फूट जाता है
दोस्त कहते थे आशा करना ग़लत है
भगवद गीता भी कहती है करम किए जा
काम करनी की लगन वो आशा ही दिलाती है शायद
आशा की यह अति एक दिन मुझे ले डूबेगी

डर लगता है

जब याद आती हैं उन लम्हों की
डर लगता है
की जज़्बात कहीं मुझे जकड ना ले
की कल को सोच कर में आज ना खो दूँ
की क्या में ही ऐसा हूँ
की यह अकेलापन कहीं मुझे निगल ना ले
सोचता हूँ इससे लडूंगा
पर जितना लड़ता हूँ यह उतना बढता है
डर लगता है ।

पता नही

जो साकी ने यूँ जाम ना भरा होता
शायद में दिल से नही दिमाग से सोच रहा होता
दोस्तों का सहारा ना होता
तो आज में होश में होकर भी नशे में होता ।

समय भी खूब खेल खेलता है
समय के पीछे चलो तो यादों के जाल में फंसाता है
समय के आगे चलो तो सपनो के जंजाल में घूम करता है
समय के साथ चलो तो कुछ समझ ना आने का एहसास दिलाता है ।

पता नहीं क्या क्या और क्यूँ लिखता हूँ कभी कभी
पर लगता है की कुछ लोग मेरी बातों को समझते हैं कभी कभी
साँस तो में हमेशा लेता हूँ पर महसूस करता हूँ कभी कभी
दोस्त हमेशा रहेंगे पर दोस्ती अब महसूस होती है कभी कभी।